जायद में पशुओं के लिए हरे चारे की बहुत कमी रहती है जिसका दुधारू पशुओं के स्वास्थ्य
एवं दूध उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस समस्या के समाधान हेतु जायद में बहु
कटाई वाली ज्वार, लोबिया, मक्का तथा बाजरा आदि फसलों को चारे के लिए अवश्य बोना चाहिए।
1. बहुकटाई वाली ज्वार
जायद में ज्वार की ऐसी किस्मों की खेती करनी चाहिए जिसमें एच.सी.एन. (एक विष) की मात्रा
बहुत कम हो तथा जिन्हें चारे के लिए कई बार काटा जा सकता है।
एस.एस.जी. – 988-898 पी.सी. 23 तथा एम.पी. चरी एस.एस.जी.
59-3ए जे.सी.69 इसके लिए उपयुक्त प्रजातियां हैं।
भूमि
अच्छे जल निकास वाली दोमट, बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त है।
भूमि की तैयारी
पलेवा करके एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 1-2 जुताइयां देशी हल से करना चाहिए।
हर जुताई के बाद पाटा लगाना चाहिए।
बुवाई का समय
इसकी बुवाई मार्च के दि्वतीय सप्ताह से मार्च तक करना चाहिए।
बीज दर
30-40 किग्रा. प्रति हेक्टेयर
बुवाई की विधि
प्रायः इसे छिटकवां बोते हैं। हल के पीछे 25-30 सेमी. की दूरी पर लाइनों में इसकी बुवाई
करना अच्छा होता है।
उर्वरक
उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करें। 30 किग्रा. नत्रजन तथा 30 किग्रा.
फास्फोरस बुवाई के समय प्रयोग करें। एक माह बाद 30 किग्रा. नत्रजन खड़ी फसल में दें।
प्रत्यके कटान के बाद सिंचाई के उपरान्त ही 30 किग्रा. नत्रजन का दुबारा प्रयोग करें।
खरपतवार नियंत्रण
बोने के तुरन्त बाद 1 किग्रा. एट्राजीन 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव
करें। वरू घास की समस्या का निदान पाने हेतु फसल चक्र अपनाया जायें।
सिंचाई
फसल को वर्षा होने से पूर्व हर 8 से 12 दिन बाद सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
कटाई
बवाई के 50-60 दिन बाद हरे चारे के लिए पहली कटाई करना चाहिए। इसके बाद फसल हर 25-30
दिन बाद काटने योग्य हो जाती है। मार्च में बोई गयी ज्वार से सितम्बर के अन्त तक 4
कटाइयां ली जा सकती हैं।
उपज
हरे चारे की उपज प्रति कटाई में 200-250 कु. प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकती है।